अनुभूति में
कृष्ण सुकुमार की रचनाएँ
गीतों में-
आँसू, सपने, दर्द, उदासी
कितना गहरा है सन्नाटा
किन्हीं क्षणों में
कुछ पल एहसासों के जी लें
नहीं भूलते फूल
रोज सवेरा
श्रमिक अँधेरों को धुनते हैं
अंजुमन में-
उठाने के लिए नुक़्सान
उदासी के दरख्तों पर
किसी गुजरे हुए
न जाने क्यों
सफल वे हैं
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किसी गुजरे हुए
किसी गुज़रे हुए इक वक़्त का ठहरा
हुआ लम्हा
मुझे आवाज़ देता है मेरा खोया हुआ लम्हा
समेटे जा रहा था कब से मैं बिखरी हुई चीज़ें
उड़ा कर ले गया मुझको हवा होता हुआ लम्हा
किनारों की हदें ही तोड़ दीं दरिया के पानी ने
वो मैं ही हूँ उसी सैलाब में बहता हुआ लम्हा
मेरी आँखों की कोरों से निकल कर ख़्वाब में डूबा
सुबक कर सो गया बिस्तर पे इक रक्खा हुआ लम्हा
ख़यालो! छोड़ दो पीछा अकेलेपन की ख़्वाहिश है
मैं जीना चाहता हूँ ख़ुद में इक डूबा हुआ लम्हा
३ सितंबर २०१२ |