अनुभूति में
कृष्ण सुकुमार की रचनाएँ
गीतों में-
आँसू, सपने, दर्द, उदासी
कितना गहरा है सन्नाटा
किन्हीं क्षणों में
कुछ पल एहसासों के जी लें
नहीं भूलते फूल
रोज सवेरा
श्रमिक अँधेरों को धुनते हैं
अंजुमन में-
उठाने के लिए नुक़्सान
उदासी के दरख्तों पर
किसी गुजरे हुए
न जाने क्यों
सफल वे हैं
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कुछ पल एहसासों
के जी लें
आओ, अपने भद्र मुखौटे
अपने नाखूनों से छीलें
कुछ पल एहसासों के जी लें
जिन फूलों के तन से खुशबू
बहती थी, अब लहु टपकता!
मौसम शिशुवत् रोज़ सुबकता
तन पर रोज़ झपटती चीलें!
हम ख़ुद को लिखते जाते हैं
लेकिन नहीं देखते पढ़ कर,
रोज़ सीढ़ियाँ ऊपर चढ़ कर
शब्दों की बालें कंदीलें!
अब मैं सपने नहीं देखता,
सच का झूठ पकड़ लेता हूँ
ख़ुद पर रोज़ अकड़ लेता हूँ,
छाती ठुकी देख कर कीलें
श्रद्धा अपना इष्ट खोजती
रोज़ कुहासे में खो जाती,
प्यास और तेज़ हो जाती
देता कुंठित दर्द दलीलें
रोज़ हमारे भीतर उगते
जाने कैसे-कैसे जंगल
हम मरते छुप-छुप कर प्रतिपल,
क्यो नहीं एक बार विष पी लें
१४
अप्रैल २०१४ |