अनुभूति में
कमला सिंह ज़ीनत की रचनाएँ-
अंजुमन में-
उसी की
मेहरबानी है
किताब करने दे
जो लोग फिक्रे अदावत में
वो मेरा है
सूना यह आसमान
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किताब करने दे
आज खुद को किताब करने दे
ज़िंदगी का हिसाब करने दे
उम्र गुज़री है पैचो-ख़म में बहुत
खुद से खुद को ख़िताब करने दे
रफ़्ता रफ़्ता चुना है मुश्किल से
खुद को अब लाजवाब करने दे
शाख़े हसरत पे जो हैं कुम्हलाए
उन गुलों को गुलाब करने दे
वक़्त के साथ फूट जायेंगे
ज़ख्मे दिल है हुआब करने दे
यूँ तो 'ज़ीनत' नहीं मयस्सर वो
फिर भी आँखों में ख़्वाब करने दे
२७ अक्तूबर २०१४ |