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अनुभूति में कमला सिंह ज़ीनत की रचनाएँ-

अंजुमन में-
उसी की मेहरबानी है
किताब करने दे
जो लोग फिक्रे अदावत में
वो मेरा है
सूना यह आसमान

 

जो लोग फ़िक्रे अदावत में

जो लोग फ़िक्रे अदावत में पलते रहते हैं
वही ज़माने से दिन रात जलते रहते हैं

जो गिर चुके हैं ज़माने में अपनी नज़रों से
वे अपने आप ही गिरते सँभलते रहते हैं

जो हाँडियाँ हैं खबासत की मोख्तसर लेकिन
वे बुलबुले की तरह से उबलते रहते हैं

जिन्हें न शिकवा है ग़ैरों से फ़िक्र है अपनी
वे अपनी धुन में सरे राह चलते रहते हैं

हसद के साथ जो भरते हैं दोस्ती का दम
वे दोस्ती में भी पहलु बदलते रहते हैं

जो चाहते हैं कि बन जाएँ वे 'ज़ीनत' की तरह
नसीब देखो वही हाथ मलते रहते हैं

२७ अक्तूबर २०१४

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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