अनुभूति में
जयप्रकाश मिश्र की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
अगर चीनी नहीं
कहता है तू महबूब
कई साँचों से
चिकनी मिट्टी
अंजुमन में-
आँधियों के देश में
कोई जड़ी मिली नहीं
कोई सुग्गा न कबूतर
गरमजोशी है लहजे में
मेरा यूँ जाना हुआ था
वफा याद आई
सजाना मत हमें
हवा खुशबू की
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सजाना मत हमें
सजाना मत हमें, बाजार की ऊँची दुकानों में,
कि हम इन्सान हैं, बनते नहीं हैं कारखानों में।
जब आया वक्त तो सबसे बड़े दुश्मन वही निकले
गिने जाते थे जो अक्सर हमारे कद्रदानों में।
मना करते हैं वो ढालें उठाने के लिए हमको
जो तलवारें छुपाके रख नहीं सकते मयानों में।
जिन्होंने जुल्म सहकर मुजरिमों को चैन बख्शा है
जमाना है कि उनको गिन रहा है नातवानों में।
कोई आँखें मेरी आँखों में अब भी टिमटिमाती हैं
कोई आवाज अब भी गूँजती रहती है कानों में।
न जाने कौन है जो ख्वाब में हर सिम्त फैला है
नदी में, बाग में, मैदान के टीलों-ढलानों में।
२० अप्रैल २०१५
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