अनुभूति में
जयप्रकाश मिश्र की रचनाएँ-
नयी रचनाओं में-
अगर चीनी नहीं
कहता है तू महबूब
कई साँचों से
चिकनी मिट्टी
अंजुमन में-
आँधियों के देश में
कोई जड़ी मिली नहीं
कोई सुग्गा न कबूतर
गरमजोशी है लहजे में
मेरा यूँ जाना हुआ था
वफा याद आई
सजाना मत हमें
हवा खुशबू की
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अगर चीनी नहीं
अगर चीनी नहीं, किस काम की ये
चाय-पत्ती है
कई मेहमान घर में देखके माँ हक्की-बक्की है।
मैं हूँ मजदूर, मेरी कब्र पर ये संगमरमर क्यों?
मेरा हर ख्वाब मिट्टी था, मेरी पहचान मिट्टी है।
डुबाने का है तुमको शौक, बचने की मुझे चिन्ता
तुम्हारे पास लहरें हैं, हमारे पास कश्ती है।
दिखी अनमोल सी मुस्कान उस लड़की के चेहरे पर
कि पीतल की कोई जन्जीर मेले से खरीदी है।
कुतर डाले किसी वहशी ने मेरी रात के कपड़े
कोई लड़की मेरे ख्वाबों में फिर से चीख उठ्ठी है।
महज इक जान की कीमत मिलेगी शेरपाओं को
फतह की वाहवाही सुर्खरू सैलानियों की है।
जरा से ऐश की खातिर भुलाना माँ की तकलीफें
मैं कैसे मान लूँ, रूतबा है, फैशन है, तरक्की है।
१५ नवंबर २०१५
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