अनुभूति में हस्तीमल हस्ती
की रचनाएँ- नई रचनाओं में-
कितनी मुश्किल
कौन धूप सा
दानिशमंदों के झगड़े
सच के हक में
सबकी सुनना
अंजुमन में-
उससे मिल आए हो
सबका यही खयाल
काम करेगी उसकी धार
जुगनू बन या तारा बन
टूट जाने तलक
सच कहना और पत्थर खाना
सच का कद
सरहदें नहीं होतीं |
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सबका यही ख़्याल
सबका यही ख़्याल कभी था पर अब नहीं
इंसान इक मिसाल कभी था पर अब नहीं
पत्थर भी तैर जाते थे तिनकों की ही तरह
चाहत में वो कमाल कभी था पर अब नहीं
क्यों मैंने अपने ऐब छिपा कर नहीं रखे
इसका मुझे मलाल कभी था पर अब नहीं
क्या होगा कायनात का गर सच नहीं रहा
हर दिल में ये ख़्याल कभी था पर अब नहीं
क्यों दूर-दूर रहते हो पास आओ दोस्तों
ये ‘हस्ती’ तंग-हाल कभी था पर अब नहीं
८ जून २००९ |