कतआत -
१
आज मुरझा गए तो क्या गम है
हम शगुफ्ता गुलाब होते थे।
दिल की बातों में आ गए वरना
हम कहाँ यूं ख़राब होते थे।
२
ज़िंदगी के कुमारखाने में
देख तो क्या नसीब करता है
एक बनता है जब अमीर कोई
सैंकडों को गरीब करता है
३
नूर इक फैलता है धरती पर
फूल पाकीज़गी का खिलता है
पूरा आलम सँवर सँवर जाए
दिल से जब दिल कहीं भी मिलता है
४
बाप दादा भी झेलते गुज़रे
मैं भी गम ढो रहा हूँ कुछ ऐसे
एक मुफलिस के घर में पुश्तों तक
इक महाजन का क़र्ज़ हो जैसे
७ जुलाई २००८
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