इश्क में फूल
इश्क में फूल अगर सूख गया है कुछ तो।
रंग तितली के परों का भी उड़ा है कुछ तो।
ये अलग बात कि आखिर में गिरा है पत्ता
शाख पे रहते हवाओं से लड़ा है कुछ तो।
कोई भी जबकि नहीं मेरे सिवा और यहाँ
कौन बोला था अभी मैंने सुना है कुछ तो।
बंद कमरों की घुटन में न कहीं मिट जाएँ
खिड़कियाँ खोलो कि दुनिया में हवा है कुछ तो।
तेरी आँखों से गिरा अश्क गुहर की सूरत
मेरे अंदर भी लगा टूट गया है कुछ तो।
ज़िंदगी तेरी तरफ़ मेरे जो उठे हैं कदम
फासिला तुझ से मिरा और बढ़ा है कुछ तो।
मैं बदल पाया न हालात को अपने ऐ अक्स।
बोझ सीने पे हमेशा ही रहा है कुछ तो।
७ जुलाई २००८
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