देखते ही देखते
देखते ही देखते सब के चुराकर ले गया।
आईना इक धूप का टुकड़ा उड़ाकर ले गया।
मैं तो समझा था कि सूरज है वो देगा रोशनी
वो मगर मेरे उजाले भी उठाकर के ले गया।
रख गया इक मसअलों की धूप मेरे वास्ते
छाँव ठंडी ज़िंदगी की वो चरा कर ले गया।
चीथड़ों से एक गुड़िया मैंने की तख़लीफ जब
उस पे भी वो जालिम अपना हक जता कर ले गया।
उसके सीने में है क्या ये जान पाया ही न मैं
वो कि सारे राज़ सीने में दबा कर ले गया।
अब मेरी दुनिया में बाकी कुछ नहीं, कुछ भी नहीं
एक रेला आया पत्थर तक बहा कर ले गया।
ज़िंदगी की दास्ताँ लिखी थी हर पत्ते पे अक्स
आया तूफ़ाँ और सब पत्ते उड़ा कर ले गया।
७ जुलाई २००८
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