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अनुभूति में गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज' की रचनाएँ-

अंजुमन में-
अब विदूषक
कुछ चुनिंदा शेर
चाँद को छू लो
चाँद तारों पर
तीन मुक्तक
दीवार में दरार
पृष्ठ सारा
मुहब्बत से देहरी
शिव लगे सुंदर लगे
श्रीराम बोलना
हक़ीक़त है
हिंदी की ग़जल

मुक्तक में-

 

पृष्ठ सारा

पृष्ठ सारा भर गया बस हाशिया बाकी रहा।
ज़िंदगी में मौत का ही क़ाफ़िया बाकी रहा।

अक्षरों के वंश मे अब ताजपोशी के लिए
शिष्टता के नाम पर बस 'शुक्रिया' बाकी रहा।

ज़िंदगी हिस्से की अपनी हम कभी की जी लिए
सांस ही लेने का अब तो सिलसिला बाकी रहा।

मौत आई थी हमें लेने मगर जल्दी में थी
बोरिया तो ले गई पर बिस्तरा बाकी रहा।

लोग मिलते हैं हमें कोने फटे ख़त की तरह
गम़ गल़त करने को केवल डाकिया बाकी रहा।

१ फरवरी २००५

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