अनुभूति में
गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज' की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अब विदूषक
कुछ चुनिंदा शेर
चाँद को छू लो
चाँद तारों पर
तीन मुक्तक
दीवार में दरार
पृष्ठ सारा
मुहब्बत से देहरी
शिव लगे सुंदर लगे
श्रीराम बोलना
हक़ीक़त है
हिंदी
की ग़जल
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चाँद तारों पर
चाँद तारों पर बड़ा आसान है
ग़ज़लें सुनाना,
तुम नया मतला ग़ज़ल का धूल मिट्टी से उठाना।
अर्थ पूजा का हमें बतला रहे हैं वे पुजारी,
'स्वस्तिक' का चिह्न भी आता नहीं जिनको बनाना।
रक्त में उड़ने लगें जब तितलियाँ रंगीन पर की,
उस समय मुश्किल बहुत है देह को सूफ़ी बनाना।
रात भर घी के दिये सी आँच देती है हथेली,
आपने सीखा कहाँ यों हाथ में मेंहदी रचाना।
उड़ रहा पागल धुएँ सा जो शहर की चिमनियों से,
वो धुआँ भी चाहता था गाँव में इक घर बसाना।
पेड़-पौधे भी अगर होते कहीं हिंदू-मुसलमां,
फिर तो मुश्किल था ज़मीं पर आदमी का आबोदाना।
कुछ दिनों गऱ और ज़िंदा रह गए इस दौर में हम,
आ ही जाएगा हमें अख्ल़ाक को पेशा बनाना।
कब्ल इसके हिमालय ही खुदकुशी करने लगे,
आबे-ज़मज़म में हमें आ जाए गंगाजल मिलाना।
१ फरवरी २००५
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