अनुभूति में
गोपाल कृष्ण सक्सेना 'पंकज' की रचनाएँ-
अंजुमन में-
अब विदूषक
कुछ चुनिंदा शेर
चाँद को छू लो
चाँद तारों पर
तीन मुक्तक
दीवार में दरार
पृष्ठ सारा
मुहब्बत से देहरी
शिव लगे सुंदर लगे
श्रीराम बोलना
हक़ीक़त है
हिंदी
की ग़जल
|
|
हक़ीक़त है
खुशबू के एक गाँव में ख्व़ाबों
का घर लगे
उसके ख़याले-हुस्न को छूने में डर लगे।
अहसास जिसका कर रहा रब को भी बेमज़ा
ऐसे हसीन यार को कुछ तो नज़र लगे।
जाते हैं सारे रास्ते बस एक ही घर तक
जिसकी हमें तलाश थी उसका शहर लगे।
इतने हसीन मऱ्ज का ऐसा बुरा हकीम
हमको तो ये इलाज खुदा का कहर लगे।
ये भी बदा था आबोहवा के नसीब में
गंगा का जल भी इन दिनों छूने में डर लगे।
आँचल पकड़ के मां को जगाने लगे शिशु
'सहरी' मिले तो उनको भी शायद सहर लगे।
बज़्मे-अदब में आज फ़रिश्ते भी आएँगे
'पंकज' का गीत आपके होंठों पे गर सजे।
१ फरवरी २००५
|