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अनुभूति में गिरीश कुमार 'त्यागी' की
रचनाएँ -

अंजुमन में
चंदा के घर
बैसाखी के बल पर
मेरे उसके बीच
मेरे ख़तों को

 

बैसाखी के बल पर

बैसाखी के बल पर चलना
यानी खुद का खुद को छलना

काजल बन आँखों में बसना
आँसू बनकर आँख से ढलना

सागर से बादल बन जाना
बादल का सागर में मिलना

दिल में यादें बन कर रहना
आहें बन कर रोज़ निकलना

हिम बन कर मन पर छा जाना
हिम खंडों-सा कभी पिघलना

सूरज जैसा रोज़ चमकना
अपनी ही आतिश में जलना

 9 अगस्त 2007

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