अनुभूति में
गिरीश कुमार
'त्यागी' की
रचनाएँ -
अंजुमन में
चंदा के घर
बैसाखी के बल पर
मेरे उसके बीच
मेरे ख़तों को
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चंदा
के घर
चंदा के घर भी आज चाँदनी नहीं
चरागाँ तो है बहुत रोशनी नहीं
यों तो मिले हैं आज वो
मुद्दतों के बाद
शिकवा शिकायतें तो हैं, दुश्मनी नहीं
फिरत हैं सुबह शाम सड़कों पर
नौजवान
धंधे तो है तमाम, नौकरी नहीं
करने लगे हैं आज हम बीमे का
कारोबार
मिलते हैं सबसे प्रेम से पर दोस्ती नहीं
रखा है ऊँचा सर जवानों ने देश
का
बेशक मिली है मौत मगर बुज़दिली नहीं
9 अगस्त 2007 |