अनुभूति में
कुमार अनिल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
आँख अश्कों का समंदर
ज़माने को बदलना
टूटे ख्वाबों
दिल में दर्द
पास कभी तो आकर देख
अंजुमन में-
ख्वाबों में अब आए कौन
घर से बाहर
छोटा सा उसका कद
जब से बेसरमाया हूँ
वो इस जहाँ का खुदा है
शेख बिरहमन |
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वो इस जहाँ का खुदा है
वो इस जहाँ का खुदा है, मुगालता है उसे
हैं सब बुरे वो भला है, मुगालता है उसे
उछालता है वो कीचड़ लिबास पर सबके
और खुद दूध धुला है, मुगालता है उसे
नजर के सामने इक चीज जो चमकती है
फलक पे चाँद खिला है, मुगालता है उसे
गई है कान में सरगोशियाँ सी करके हवा
कुछ उससे मैंने कहा है, मुगालता है उसे
चमकती रेत में डाली जरूर है उँगली
पर उसका नाम लिखा है, मुगालता है उसे
वो एक जुगनू है हवाओं जलता बुझता हुआ
किसी सूरज का सगा है, मुगालता है उसे
५ सितंबर २०११ |