अनुभूति में
कुमार अनिल की रचनाएँ-
नई रचनाओं में-
आँख अश्कों का समंदर
ज़माने को बदलना
टूटे ख्वाबों
दिल में दर्द
पास कभी तो आकर देख
अंजुमन में-
ख्वाबों में अब आए कौन
घर से बाहर
छोटा सा उसका कद
जब से बेसरमाया हूँ
वो इस जहाँ का खुदा है
शेख बिरहमन |
|
घर से बाहर
घर से बाहर आया मैं
सबसे हुआ पराया मैं
कोशिश तो सबने ही की
किससे गया भुलाया मैं
चुनने निकला था मोती
कुछ पत्थर ले आया मैं
बस तब तक ही जीवित था
जब तक हँसा हँसाया मैं
इक अनबूझ पहेली का
उत्तर रटा रटाया मैं
इंसानों की बस्ती से
जान बचा कर आया मैं
अपने अन्दर झाँका था
खुद से ही शरमाया मैं
बिना पता लिखा ख़त हूँ
वो भी खुला खुलाया मैं
५ सितंबर २०११ |