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ख्वाबों में अब आए कौन
घर से बाहर
छोटा सा उसका कद
जब से बेसरमाया हूँ
वो इस जहाँ का खुदा है
शेख बिरहमन

 

छोटा सा उसका कद

छोटा सा उसका कद है
पर बाहर से बरगद है

रोज बहस सी होती है
मेरे अन्दर संसद है

मन में घुंघरू बजते हैं
जाने किसकी आमद है

कोई पार करे इसको
मन ये मेरा सरहद है

कोई परिंदा तो आए
कब से सूना गुम्बद है

रोज डराता है मुझको
मेरा मन ही शायद है

५ सितंबर २०११

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