पत्र व्यवहार का पता

अभिव्यक्ति तुक-कोश

१५. ९. २०१६

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कागज की नाव

 

 

नदी-नदी तैर रही
कागज की नाव।

वन-पर्वत-घाटी
भूले परिपाटी
मेघों का भाव
तौल रही माटी

अनदेखे मन के अब
उभर रहे घाव।

मूल्यों के विघटन
धुंध, धुआँ, बादल
थकी-थकी आँखों से
बहता है काजल

चिंतन बिन चिंता से
उलझ गये भाव।

टूट गईं सीमाएँ
दूभर है जीना
फटी हुई चादर औ'
नित्य उसे सीना

सूरज ने दिखा दिया
धरती को ताव।

- भवेश चंद जायसवाल

इस पखवारे

गीतों में-

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भवेश चंद जायसवाल

अंजुमन में-

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ठाकुरदास सिद्ध

छंदमुक्त में-

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रंजना गुप्ता

मुक्तक में-

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आचार्य संजीव सलिल

पुनर्पाठ में-

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अमिताभ त्रिपाठी अमित

 

पिछले पखवारे
१ सिंतबर २०१६ को प्रकाशित अंक में

गीतों में-

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मधु प्रधान

अंजुमन में-

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महावीर उत्तरांचली

दिशांतर में-

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कृष्णा वर्मा

दोहों में-

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रतनप्रेमी प्रजापति

पुनर्पाठ में-

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डॉ. अजय पाठक

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संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

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