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अभिव्यक्ति तुक-कोश

१६. १. २०१२

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रेस के घोड़े

सूरज फिर
से हुआ लाल है

हुआ इशारा,
लपक के दौड़े
आगे बढ़ते, खाते कोड़े
पूँछ उठाये, सरपट सरपट
हम हैं जीवन
रेस के घोड़े

कसी नकेल
और खिंची लगाम
तन मन अपने हुए गुलाम
अंधी दौड़ के अंत में रोटी
अपनी किस्मत
यही कसौटी
अपनों से ही जूझ रहे हम
कौन किसी को पीछे छोड़े

ऊपर
अपने लदा सवार
ज़रा जो ठिठके, करता वार
उसका चाबुक, उसकी मार
पीठ है सहती,
बारम्बार
अपनी जीत की धुन में पागल
खून पसीना लिए निचोड़े

शौकीनों
का कारोबार
अपने लिये देह व्यापार
देख रहे वो बजा के ताली
जीते तो खुश,
हारे गाली
हम पर दाँव खेल वो जीतें
हम जस के तस रहे भगोड़े

-संजीव निगम

इस सप्ताह

गीतों में-

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संजीव निगम

अंजुमन में-

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सविता असीम

छंदमुक्त में-

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शील भूषण

छोटी कविताओं में-

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सुधा ओम ढींगरा

पुनर्पाठ में-

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अटलबिहारी वाजपेयी

पिछले सप्ताह
९ जनवरी २०१२ के अंक में

गीतों में-

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ओम निश्चल

अंजुमन में-

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सतीश कौशिक

दिशांतर में-

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शारदा मोंगा

मुक्तक में-

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जयजयराम आनंद

पुनर्पाठ में-

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फजल ताबिश

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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