फजल
ताबिश
(५
अगस्त १९३३ – १० नवम्बर १९९५)
भोपाल की हिन्दी उर्दू
दुनिया के महत्वपूर्ण सेतु थे। १९६९ में उर्दू में एम ए करने
के बाद वे लेक्चरर हो गए। १९८० से १९९१ मध्य प्रदेश उर्दू
अकादमी के सचिव रहे और अगस्त १९९३ में मध्य प्रदेश शिक्षा
विभाग से पेंशन पा कर रिटायर हुए।
आपने शायरी, कहानियाँ, अनुवाद, नाटक और एक अधूरा आत्मकथात्मक
उपन्यास सभीकुछ लिखा है।उनके नाटकों का ब व करंत जैसे विख्यात
निर्देशकों द्वारा मंचन किया गया। इसके अतिरिक्त आपने मणिकौल
की फिल्म "सतह से उठता आदमी" और कुमार साहनी की फिल्म "ख्याल
गाथा" में भी काम किया। उनके पहले नाटक "बिला उन्वान" को
केन्द्रीय सरकार की "मिनिस्ट्री आफ साइंटिफिक रिसर्च एँड
कल्चरल अफेरयर्स " ने १९६२ में उर्दू भाषा पहला पुरस्कार दिया।
प्रमुख कृतियाँ
नाटक : बिना उन्वान, डरा हुआ आदमी, अखाड़े के बाहर से,
फरीउद्दीन अत्तार की मसनवी
गज़लो और नज्मों का संग्रह- अजनबी नहीं
अनुवादः प्रमचंद के उपन्यास कर्मभूमि का ड्रामा
रूपांतरः डेनिश ड्रामा द जज का उर्दू अनुवाद
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अनुभूति में
फज़ल ताबिश की
रचनाएँ
अंजुमन में-
दीवाना बन कर
यह सन्नाटा
संकलन में -
गाँव में अलाव में –
मैं अकेला
धूप के पाँव-
अभी सूरज
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