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अनुभूति में फज़ल ताबिश की
रचनाएँ


अंजुमन में-
दीवाना बन कर
यह सन्नाटा
संकलन में
गाँव में अलाव में – मैं अकेला
धूप के पाँव-
अभी सूरज
 

 

 

oदीवाना बन कर

दिल कहे दीवाना बनकर दरबदर हो जाइये
दूसरा दिल हो कि शाम आ पहुंची घर को जाइये

कौन सी आवारगी यारी कहाँ की सरखुशी
घर में पीजै मीर को पढ़िये वहीं सो जाइये

आने वाले वसवसे बीते दिनों से भाग कर
कुछ न बन पाए तो रस्तों में कहीं खो जाइये

हमको सब मालूम है मालूम होने का भरम
बस ये औलादें ही बस में हैं यही बो जाइये

घर के दीवारों के गिरने की खबर मुझको भी है
आप खुश होना अगर चाहें तो खुश हो जाइये

माँगिये हर एक से उसके गुनाहों का हिसाब
और सारे शहर में सबके खुदा हो जाइये

१५ सितंबर २०००

 

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