अनुभूति में
फज़ल ताबिश की
रचनाएँ
अंजुमन में-
दीवाना बन कर
यह सन्नाटा
संकलन में
गाँव में अलाव में –
मैं अकेला
धूप के पाँव-
अभी सूरज
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यह
सन्नाटा
यह सन्नाटा बहुत महँगा
पड़ेगा
उसे भी फूट कर रोना पड़ेगा
वही दो चार चेहरे अजनबी से
उन्हीं को फिर से दोहराना पड़ेगा
कोई घर से निकलता ही नहीं है
हवा को थक के सो जाना पड़ेगा
यहाँ सूरज भी काला पड़ गया है
कहीं से दिन भी मंगवाना पड़ेगा
वे अच्छे थे जो पहले मर गये हैं
हमें कुछ और पछताना पड़ेगा
१५ सितंबर २०००
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