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बौराए
बादल |
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क्या खाकर बौराए बादल?
झुग्गी-झोंपड़ियाँ उजाड़ दीं
कंचन-महल
नहाए बादल!
दूने सूने हुए भरे घर
लाल लुटे दृग में मोती भर
निर्मलता नीलाम हो गयी
घेर अंधेर
मचाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!
जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार
गुँजाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!
काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?
बदल-बदल दल
छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!
जानकीवल्लभ शास्त्री | |
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