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  ११. ४. २०११

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बौराए बादल

  क्या खाकर बौराए बादल?
झुग्गी-झोंपड़ियाँ उजाड़ दीं
कंचन-महल
नहाए बादल!

दूने सूने हुए भरे घर
लाल लुटे दृग में मोती भर
निर्मलता नीलाम हो गयी
घेर अंधेर
मचाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!

जब धरती काँपी, बड़ बोले-
नभ उलीचने चढ़े हिंडोले,
पेंगें भर-भर ऊपर-नीचे
मियाँ मल्हार
गुँजाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!

काली रात, नखत की पातें-
आपस में करती हैं बातें
नई रोशनी कब फूटेगी?
बदल-बदल दल
छाए बादल!
कंचन महल नहाए बादल!

जानकीवल्लभ शास्त्री
इस सप्ताह

गौरवग्राम में भावभीनी श्रद्धाजलि के साथ-

अंजुमन में-

छंदमुक्त में-

हाइकु में-

पुनर्पाठ में-

पिछले सप्ताह
४ अप्रैल २०११ के अंक में

अंजुमन में-
श्रद्धा जैन

छंदमुक्त में-
भारती पंडित

गीतों में-
श्‍यामनारायण श्रीवास्‍तव 'श्‍याम'

दोहों में-
रघुविन्द्र यादव

पुनर्पाठ में-
शीतल श्रीवास्तव

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन

सहयोग : दीपिका जोशी

 
 
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