भूल गया मेरा शहर
सब ऋतुओं के नाम
गुलदस्ते
मधुमास को
बेचें बीच बजार
सिक्कों की खनकार में
सिसके मेघ मल्हार
गोदामों में सिसकती
कब से वत्सल घाम
पाँवों में
पहिए लगे
करें हवा से बात
पर खुद तक पहुँचे कहाँ
हम चलकर दिन रात
यहाँ वहाँ भटका रहीं
रोशनियाँ अविराम
पूरब सुकुआ
कब उगा
कब भीगी थी दूब
हिरनी छाई गगन कब
चाँद गया कब डूब
सभी कथानक गुम हुए
भौंचक दक्षिण वाम
--राजेंद्र गौतम
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