जिस दिन मेरे घर एक
चिड़िया आई
पंख फुलाए
मैंने देखा वह दिन
मेरे मन का था
भूल गई थीं
सभी झंझटें
लिखी गई थी सिर्फ़ राग-मय
मीठी-मीठी घर-गाथा
मुझे लगा यह दिवस
सुरों में
मुझको गाए
हर कश्मीरी-क्षण मुझमें
जो डरा-डरा था
अपने पंखों
लाल गुलों का बाग खिलाए
अब तक जो मेरी आँखों में
नुचा-मरा था
मेरा आज
तुम्हारे कल की
भोर जगाए
--अनूप अशेष
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