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1. 9. 2007  

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थक कर बैठ न जाना राही

 

थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है
माना तपती धूप है जीवन, मिलती फिर भी छाँव है
1
धूप में जितना चल पाओगे,
खुद में उतना बल पाओगे
जो भी अमर हुआ है जग में, छिला उसी का पाँव है
थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है
11
आस – निरास भरा जीवन है,
हानि-लाभ तो आजीवन है
जीवन की चौसर पर सबका अपना-अपना दाँव है
थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है

1
ज्यों – ज्यों सीढ़ी चढ़ जाओगे,
संदेहों के गढ़ पाओगे
जग का हर इक रिश्ता-नाता 'भ्रम-कागा' की काँव है
थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है

11
जग में मोती चाहो पाना,
गहरे सागर मथते जाना
संयम से जीवन में मिलता हर अभिलाषित ठाँव है
थककर बैठ न जाना राही, अभी न आया गाँव है

-- मधु मोहिनी उपाध्याय

 

इस सप्ताह

इस माह के कवि में-
मधु मोहिनी उपाध्याय

अंजुमन में-
कुसुम सिन्हा की नज़्में

कविताओं में-
विपिन चौधरी

देशांतर में-
मध्यपूर्व से परमजीत ओबेरॉय और घनश्यामदास आहूजा

दोहों में-
सरदार कल्याण सिंह

पिछले सप्ताह
(24 अगस्त 2007 के अंक में)

गीतों में-
संतोष कुमार सिंह

अंजुमन में-
देवी नांगरानी

कविताओं में-
बिंदु भट्ट

नई हवा में-
आशीष कुमार अग्रवाल, शार्दूला और अजय यादव

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प्रकाशन : प्रवीण सक्सेना -|- परियोजना निदेशन : अश्विन गांधी
संपादन¸ कलाशिल्प एवं परिवर्धन : पूर्णिमा वर्मन
-|- सहयोग : दीपिका जोशी