थककर बैठ न जाना राही,
अभी न आया गाँव है
माना तपती धूप है जीवन, मिलती फिर भी छाँव है
1
धूप
में जितना चल पाओगे,
खुद में उतना बल पाओगे
जो भी अमर हुआ है जग में, छिला उसी का पाँव है
थककर बैठ न जाना राही,
अभी न आया गाँव है
11
आस –
निरास भरा जीवन है,
हानि-लाभ तो आजीवन है
जीवन की चौसर पर सबका अपना-अपना दाँव है
थककर बैठ न जाना राही,
अभी न आया गाँव है
1
ज्यों
– ज्यों सीढ़ी चढ़ जाओगे,
संदेहों के गढ़ पाओगे
जग का हर इक रिश्ता-नाता 'भ्रम-कागा' की काँव है
थककर बैठ न जाना राही,
अभी न आया गाँव है
11
जग
में मोती चाहो पाना,
गहरे सागर मथते जाना
संयम से जीवन में मिलता हर अभिलाषित ठाँव है
थककर बैठ न जाना राही,
अभी न आया गाँव है
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मधु मोहिनी उपाध्याय
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