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आशीष कुमार अग्रवाल

आशीष कुमार अग्रवाल, उम्र 40 वर्ष, कृषि विभाग (उ. प्र.) में लेखाकार के पद पर कार्यरत हूँ। मैंने लखनऊ विश्वविद्यालय से एम. कॉम. किया हुआ है।

शौकिया कविताएँ व व्यंग्य लिखता हूँ अभी तक कहीं मेरी किसी रचना का कहीं प्रकाशन नहीं हुआ है।

ई मेल ­ t2agarwal@yahoo.co.in   

 

एक ग़ज़ल और एक गीत

ग़ज़ल

चढ़ी नदी है तू मगर उतरना सीख,
मेरे मुकद्दर-सी न बन सँवरना सीख।

खुद को देख सिमटे हुऐ पानी पे न जा,
तू काँच है टूट कर बिखरना सीख।

माना कि तन्हा रास्तों से महफ़ूज़ पहुँचोगे,
पर तंग गलियों में भीड़ से गुज़रना सीख।

सभी कहतें हैं तू उन्हे चाँद-सा लगे,
मेरे आँगन में तू कभी उतरना सीख।

सुना है तू वक्त से भी तेज़ चलता है,
तू आदमी है तू अभी ठहरना सीख।

जो हरदम खुश ही रहोगे तो ये कम होगा,
इज़ाफ़ा-ए-मुहब्बत के लिए कभी झगड़ना सीख।

 

गीत

थाह नही पाता हूँ मन की।
तेरी चंचल-सी चितवन की।

सौंदर्य तेरा है बोध कराता,
बसंत ऋतु के आगमन की।
तुझ-सा रूप कहीं ना देखा,
तू है श्रेष्ठ कृति सृजन की।

तेरे आने से पतझड़ को,
आशा है ऋतु परिर्वतन की।
अधर तेरे रस के भीगें है,
गर्मी है इनमे जीवन की।

छाप तेरी हृदय पर अंकित,
चाह है चुंबन के अंकन की।
तेरा समुचित सानिध्य मिला है,
सिर्फ़ कमी है आलिंगन की।

आलिंगन का ऋण उतार दे,
तुझे कसम तेरे यौवन की।
कविता शब्दों से रची गई है,
पर बात है मेरे अंतर्मन की।

24 अगस्त 2007

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