याद की
बरसातों में
जब भी होता है तेरा जिक्र
कहीं बातों में
लगे जुगनू से चमकते हैं सियाह रातों में
खूब हालात के सूरज ने तपाया
मुझको
चैन पाया है तेरी याद की बरसातों में
रूबरू होके हक़ीक़त से
मिलाओ आँखें
खो ना जाना कहीं जज़्बात की बारातों में
झूठ के सर पे कभी ताज सजाकर
देखो
सच ओ ईमान को पाओगे हवालातों में
आज के दौर के इंसान की
तारीफ़ करो
जो जिया करता है बिगड़े हुए हालातों में
आप दुश्मन क्यों तलाशें
कहीं बाहर जाकर
सारे मौजूद जब अपने ही रिश्ते नातों में
सबसे दिलचस्प घड़ी पहले
मिलन की होती
फिर तो दोहराव है बाकी की मुलाक़ातों में
गीत भँवरों के सुनो किससे
कहूँ मैं नीरज
जिसको देखूँ वो है मशगूल बही खातों में
-- नीरज गोस्वामी |