पवन चंदन के दोहे
कानून
जमकर कर लो चुगलियाँ खूब करो अपमान
पहले थे अब कट गए दीवारों के कान
खून खराबा हो गया डरने की क्या बात
लंबे थे छोटे हुए कानूनों के हाथ
चाहे जो अपराध हो गायब करो सबूत
खून डकैती राहजनी सभी माफ़ करतूत
नेक सलाह
सपने अपने न हुए चाहे जितने देख
किसी तरह मिटते नहीं ये किस्मत के लेख
ख़्वाबों में खुशियाँ मिलें ले लो हाथ बढ़ाय
न जाने किस मोड़ पर कष्ट खड़ा मिल जाय
शृंगार
प्रेमी बुढ़िया ख़्वाब में आकर करे किलोल
धीरे-धीरे चूमती झुर्रीदार कपोल
बर्ड फ्लू
खाने की इच्छा हुई कैसे खाए टाँग
दहशत-सी पैदा करे अब मुर्गे की बाँग
मुर्गा बोला मुर्गियों कौन खुशी की बात
ज़िंदा तो छोड़े नहीं ये आदम की जात
गर्मी
गर्मी के हथियार से सूरज करता चोट
सिकुड़-सिकुड़ छाया छुपै ले तरुवर की ओट
निर्जल नदिया हो गई सूख गए सब कूप
मारी-मारी फिर रही विचलित प्यासी धूप
सास बहू पर कर रही ज्यों निर्मम अन्याय
धूप धरा पर मारती कस-कस कोड़े हाय
पत्ता-पत्ता जल रहा चढ़ता ताप असीम
शीतल कैसे हों भला क्या चंदन क्या नीम
16 जुलाई 2007
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