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सरकारी बाबू
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पवन चंदन के दोहे |
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सरकारी बाबू
सबसे बेकाबू
हिंदुस्तान का सरकारी बाबू
हमने जो कुछ देखा
प्रस्तुत है सरकारी लेखा
फ़ाइल मेज़ के
एक कोने से
दूसरे कोने तक जाती है
सैंकड़ों रुपए
और सैंकड़ों दिन खाती हैं
कोने से कोने की
क्या दूरी है
लेकिन ये बाबू की मजबूरी है
फ़ाइल को
बाबू की कलम से
मिलना है
उसी के हाथ के नीचे से
निकलना है
फ़ाइल का
इस तरह से निकलना
शहर की सीमा पर लगे
चुंगी बैरियर
और उसके नीचे से निकलते
पब्लिक कैरियर
की याद दिलाता है
ट्रक क्या वैसे ही निकल जाता है
यह तो नियम है
दस्तूर है
इसमें बाबू का क्या कसूर है
आप कहेंगे
तभी ये केस होता है
जब ट्रक में अधिक
वेट होता है
तो भाई लोगों
फ़ाइल का वेट नहीं
पर पेट होता है
और
पेट के मुताबिक रेट होता है
ज़रा सोचिए
बाबू खुद का नहीं भरेगा
तो फ़ाइल को क्या भरेगा
आख़िर
क्या बुरा है
जो भी इस दुनिया में आता है
वही खाता है
गधा खाता है, घोड़ा खाता है
कोई ज़्यादा तो कोई
थोड़ा खाता है
बिना खाए तो आदमी
भी काम नहीं करता
फिर वो तो बाबू है
नहीं खाएगा
तो कहाँ जाएगा
उसको तो खाना ही पड़ेगा
वरना बॉस लड़ेगा
चपरासी से
बाबू बनाया था
अब बाबू से चपरासी बना देगा
फ्री फंड में डांट पिला देगा
अब आप ही बताएँ
कौन बेवकूफ़ है
जो डांट पिएगा
वो तो बाबू है
बोतल ही न पिएगा
खुद भी गटकेगा
बॉस भा गटकेंगे
दोनों मिलकर
इस देश को सटकेंगे
1 मार्च 2007
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