अख़बार
चंद पन्नों में सिमटा
विस्तृत संसार
दैनिक अख़बार
दुनिया को
देखने समझने का रास्ता-सा
सुबह का नाश्ता-सा
कभी कड़वा, कभी कसैला
कभी तीखा-कभी विषैला
हाँ साहब हमने इस
अख़बारी नाश्ते के
बहुत स्वाद चखे हैं
कुछ भूल गए
कुछ याद रखे हैं
आप कहेंगे
ना मिर्च ना मसाला
सफ़ेद काग़ज़ पर प्रिंट काला
मात्र ख़बरों का हवाला
फिर स्वाद कैसा
पर साहब
हम आपको समझा देंगे
लीजिए, सुनिए
मुखपृष्ठ खून से सना होगा
अमन चैन नदारद
उग्रवाद घना होगा
पूरे अख़बार का
ये आलम होगा
बेवक्त चटकी चूड़ियों का
कॉलम होगा
हत्याओं की खूँटियों पर
शीर्षक तने होंगे
सभी शब्द खून से सने होंगे
अपने वैधव्य का
स्वागत करती
नारियों की तस्वीरें
अनाथ हुए बच्चों की
सिसकियाँ और तक़दीरें
सुरक्षा व्यवस्था लड़खड़ाती हुई
हर मौत
उसकी खिल्लियाँ उड़ाती हुई
न उठ सकने वाले
कड़े कदम का आश्वासन
अपनी
कार्य कुशलता पर
हँसता कुशासन
आप कहेंगे ये तो ख़बरें हैं
स्वाद कहाँ हैं
अरे भाई
इन ख़बरों में ही
स्वाद भरा है
वरना
अख़बार में
क्या धरा है?
1 मार्च 2007
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