फ़ोटोग्राफ़र
स्त्री हो या पुरुष
मैं सबकी तरफ़
सरेआम
एक आँख मींचता हूँ
जी हाँ
फ़ोटोग्राफ़र हूँ
फ़ोटो खींचती हूँ
क्या करूँ
धंदा ही ऐसा है
आँख मारने में ही पैसा है
एक बार एक विचित्र प्राणी
मेरे पास आया
उसने अपना एक फ़ोटो खिंचवाया
बोला
ये रहे पैसे सँभालो
इसके छः प्रिंट निकालो
मैं इस बात से हैरान था
ये आदमी था या शैतान था
क्योंकि
जब मैंने डार्करूम में जाकर
इसके निगेटिव से
पोज़ बनाए
सभी पोज़
अलग-अलग आए
पहला प्रिंट निकाला
बिल्कुल काला
दूसरा निकाला
कंबख़्त. . .पुलिस वाला
तीसरा निकाला
हैरानी हुई
कि ये क्या जादू है
ये तो कमंडल लिए
भगवाधारी साधू है
चौथा निकाला मास्टर था
हाथ में छड़ी थी
एक निस्सहाय छात्रा
उसके पास खड़ी थी
पाँचवा फैक्ट्री का मालिक था
छटा
डॉक्टर और
उसका क्लीनिक था
क्लीनिक साफ़सुथरा
और चिकना फ़र्श
और वहाँ
परेशान एक नर्स
फ़ोटो खींचते अर्सा हो गया था
मगर ऐसा
कभी नहीं हुआ था
निगेटिव एक
मगर प्रिंट, एक नहीं छः
अचंभा है
अब हमारा दिल
उससे मिलने को
बेकरार था
उसका तगड़ा इंतज़ार था
ख़ैर
वह आया
हमने कहा, आइए
बोला, मेरे फ़ोटो लाइए
हम बोले, यार
तुम आदमी हो या घनचक्कर
क्या माजरा है, क्या चक्कर
हमने तुम्हारे छः प्रिंट निकाले
एक काला
बाकी सब निराले
हमारी तो
कुछ भी समझ नहीं आता
कोई फ़ोटो
किसी से मेल नहीं खाता
दिमाग़
चकरा गया हमारा
बताइए कौन-सा प्रिंट है तुम्हारा
बोला
मेरा सही फ़ोटो है पहले वाला
जो आया है बिल्कुल काला
यही असली है
बाकी सब नकली है
शेष पाँच में तो मेरी छाया है
इन लोगों पर
मेरा ही तो साया है
हम हड़बड़ाकर पूछ बैठे
कुछ परिचय दीजिए श्रीमान
बताइए कुछ अता पता
कुछ पहचान
बोला
नहीं पहचाना
धिक्कार है
आजकल चारों तरफ़
मेरी ही जय-जयकार है
अख़बारों में सम्मान
पत्रिकाओं में सत्कार है
रे मूर्ख फ़ोटोग्राफ़र
मेरा नाम बलात्कार है
जी हाँ
मैं बाहर से, भीतर से
काला ही काला हूँ
काले मन वाला हूँ
काले दिल वाला हूँ
हमने कहा
अबे ओ बलात्कार
क्यों करता है अत्याचार
तेरे कारण
नैतिकता का
बेड़ागर्क हो रहा है
भारत स्वर्ग था
नर्क हो रहा है
बोला, कह लो
मुझे तो
आपकी, इनकी और उनकी
सबकी सहनी है
पर सच कहता हूँ
मैंने किसी की वरदी नहीं पहनी है
मैंने तो
सबसे नाता
तोड़ा हुआ है
मगर सबने मुझे
बुर्का समझ कर ओढ़ा हुआ है. . .!
1 मार्च 2007
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