प्यार का रंग
दुनिया बदली
मगर प्यार का रंग न बदला
अब भी
खिले फूल के अन्दर
खुशबू होती है
गहरी पीड़ा में अक्सर हाँ
आँखें रोती हैं
कविता बदली, पर
लय-छंद-प्रसंग नहीं बदला
वर्षा होती
आसमान में बादल
घिरने पर
पात बिखर जाते हैं
जब भी आता है पतझर
पर पेड़ों से
पत्तों का आसंग नहीं बदला
हरदम भरने को उड़ान
तत्पर रहती पाँखें
मौसम आने पर
फूलों से
लदती हैं शाख़ें
बदली हवा
सुबह होने का ढंग नहीं बदला
--नचिकेता
मित्रों,
अनुभूति का 16 जून
का अंक अमलतास विशेषांक होगा। इस अवसर पर अमलतास से संबंधित
कविताएँ, गीत, ग़ज़ल, दोहे, क्षणिकाएँ तथा अन्य
विधाओं में रचनाएँ आमंत्रित हैं। रचना हमारे पास
9 जून तक अवश्य पहुँच जानी चाहिए।
--टीम अनुभूति |
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