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१
मौसम है अगिया बैताल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे
पूछना नहीं घर का हाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे
छुईमुई दुलहन को छू गई उदासी
सोने-से सुगना को हुई कुकुर-खाँसी
सतरंगी बिटिया का इंद्रधनुष टूटा
मन के अरमानों को रोज़ लगे फाँसी
और तुम बजाते हो गाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे
गाँव के फफोलों की है दवा शहर में
और शहर को देखो घाट में न घर में
सुबह-शाम का सूरज नापता अँधेरा
जीवन के नाम वसीयत लिखा ज़हर में
प्यादे की फर्जी-सी चाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे
देश-देश करते हम, देश वह कहाँ है
नदियाँ घी-दूध की, निवेश वह कहाँ है
कोई भी राह चलो दर्द के सफ़र में
जीवन में जीवन परिवेश वह कहाँ है
केवल है बातों का जाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे
विश्व की परिधि झूठी, गाँव-गाँव वृत्त है
कौन अग्नि ज्वाला में डाल रहा घृत है
शांति के कबूतर की विषम देह गाथा
जो समाज का द्रोही वह ही आदृत है
दूर नहीं अब है भूचाल, शब्द-हिरण दौड़ने लगे
—रमेश नीलकमल
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इस सप्ताह
गीतों में-
दिशांतर
में-
नई
हवा में-
छंदमुक्त में-
पिछले
सप्ताह
संकलन में-
ढेर सी नई कविताओं के साथ संकलन
नव वर्ष अभिनंदन
गीतों में-
कृष्णानंद कृष्ण,
नीरजा द्विवेदी,
कुमार रवींद्र,
भावना कुंअर,
योगेंद्र प्रसाद मिश्र,
डा प्रदीप गुप्त,
डा. आशा गुप्ता, रजनी भार्गव
गिरिराज जोशी
"कविराज"
अंजुमन में-
शास्त्री नित्यगोपाल कटारे, और
सिद्धेश्वर
सिंह
किशोर कोना में-
मीनू तोमर, मोनिका कलोसिया, अंकिता भदौरिया
छंदमुक्त में-
विपिन,
अमन गर्ग,
मधुलता अरोरा,
पूनम मिश्रा,
बिंदु भट,
डा प्रदीप गुप्त,
प्रो देवेंद्र मिश्र,
महेश चंद्र द्विवेदी
हास्य व्यंग्य में-
अभिनव शुक्ला
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