अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नव वर्ष अभिनंदन

 जग को दें प्यार की सौग़ात

         

सागर के किनारे पर जब कोई लहर,
तट से टकराकर ध्वस्त हो जाती है,
अवश्य ही पीछे से करती हुई हर-हर,
कोई दूजी उत्ताल तरंग चली आती है।

प्रकृति के उसी अबाध क्रम में चलते हुए,
जब वर्ष दो हज़ार छः का अंत आएगा,
तब भविष्य के गर्भ से उन्मुक्त होकर,
वर्ष दो हज़ार सात वर्तमान बन जाएगा।

हो ऐसा कि उसके साथ उगे नया सूरज,
जिसके प्रकाश से सारा जग जगमगाए,
चहुँ ओर प्रस्फुटित हो जाएं हर्ष की लहरें,
जन-जन का तन मन प्रफुल्लित हो जाए।

क्षणिक जीवन का मर्म मानव समझ जाए,
हर मानव का धर्म मानवता ही बन जाए,
हम सब मिलकर करें परस्पर प्रेम की बात,
नववर्ष में हम जग को दें प्यार की सौग़ात।

-महेश चंद्र द्विवेदी
1 जनवरी 2007

  

नया साल

लो फिर एक नया साल चला आया।
बासी गुलदस्ते-सा
फेंक दिया कल
पिछला साल
यादों के कूड़ेदान में।
डूब गया सूरज
फिर तीन सौ पैंसठ बार
चढ़ने उतरने को।

कालचक्र एक बार फिर
अपनी धुरी पर घूमेगा कैलेंडर बदलेंगे
दिन बढ़ेंगे घटेंगे
वसंत सावन शरद शीत
आशा निराशा हार जीत
एक बार फिर
परेशानियों से लड़ना होगा।
एक लंबा सफ़र

फिर से शुरू होगा
और हम सब
फिर एक साल घट जाएँगे।

संदीप जैन

 

 

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter