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अनुभूति में श्रीधर आचार्य शील की रचनाएँ-

अंजुमन में-
क्या जमाना आ गया है
झरने लगे हैं
नफरत के जो भाव भरे हैं
मेरे जीवन की बगिया
रात खड़ी है

गीतों में-
इक छोटा सा अंतराल
कुछ दिन बीते
तुमने कर दिया सही
यह कैसा अनुबंध
  मेरे जीवन की बगिया

मेरे जीवन की बगिया से फूल चुराने क्यों आए
तन्वंगी कोमल काया पर शूल चुभाने क्यों आए

नहीं साथ था चलना तो फिर चुपके से कह देते तुम
भूल चुका था मैं तो तुमको सपन सजाने क्यों आए

तार तार बेजार हो गए टूट गई मन की वीणा
नया-नया फिर सरगम लेकर भाव जगाने क्यों आए

ढूँढ रहा मन कब से तुमको गली गली था भटक रहा
आसपास ही था मैं तेरे अभी बताने क्यों आए

घाव दिये थे तुमने गहरे हरे हरे जो हैं अब तक
मरहम की तो बात दूर की नमक लगाने क्यों आए

घूम रहे हो लेकर गठरी लोक लुभावन वादों की
पिछला वादा भूल गए सब बात बनाने क्यों आए

धन वैभव की चाह नहीं है जीवन में सुख चैन मिले
स्वप्न महल के ऊँचे ऊँचे हमें दिखाने क्यों आए

१ दिसंबर २०२२

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