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अनुभूति में रामकिशोर दाहिया की रचनाएँ-

गीतों में-
उल्टी धार बहें
दुनिया देखी
बूँदों से सोम झरे
मेरे अन्दर रहना
लोग बस्ती के

 

लोग बस्ती के

रीढ़ को बोझे झुकाएँ
घर-गृहस्थी के
और ले आये बखेड़े
लोग बस्ती के

रेत के सूखे कणों में
स्रोत जल ढूँढे़
तोड़ते तटबंध चढ़कर
धूप के बूढे

भूल बैठी नाव फिर से
घाट-गश्ती के

फड़फड़ाती पंख चिड़िया
गिन रही तिनके
घोंसलों के पास बिखरे
खण्डहर जिनके

याद आते आज वे दिन
मौज-मस्ती के

खेत पर सरसों खड़ी
सब अटकलें सुनती
धार पैनी फाँसने को
पल नये बुनती

तेल की परछाइयों में
बोल हस्ती के

१ फरवरी २०२३

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