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अनुभूति में रामकिशोर दाहिया की रचनाएँ-

गीतों में-
उल्टी धार बहें
दुनिया देखी
बूँदों से सोम झरे
मेरे अन्दर रहना
लोग बस्ती के

 

दुनिया देखी

थानेदार कहूँ क्या मेडम
दुनियाँ देखी अन्दर से

चरमर चूँ थे रिश्ते-नाते,
लेकर दिल से जोड़ा तुमने
हमने रोका-टोंका जब भी,
माना हमको रोड़ा तुमने

आँखों में हम
नाचे-फुदके
रहना साँप-छुछुंदर से

महुवे कूँच खड़ी कर पाए
और आम गदराना जानें
रस की गंध लिये हम चहके
उससे कब बतियाना जानें ?

खट्टे-मीठे
अनुभव जीकर
हरदम रहे चुकंदर से

चार-मुकइया तेंदू-खाए
बेर-करौंदा जस का तस है
हमें पुरानी खोली अपनी
लगती अब भी खस-खस है

नदिया-नाले
नहीं रिझाते
नाते गहर समन्दर से

१ फरवरी २०२३

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