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					 नयी उमंगों 
					की चंचलता 
					 
					चीड़ वनों से जब टकराते  
					बादल के छौने 
					पीपल से बरगद कहता है  
					हम कितने बौने 
					 
					कौड़ी रखी मुट्ठियाँ भींचे 
					दिवस हुए अवशेष 
					शिला पटल पर लिखे रह गए 
					सपनों वाले देश  
					 
					नयी उमंगों की चंचलता  
					उमर लगी ढोने 
					 
					सागर की आँखों में झलकी 
					मरुथल वाली प्यास  
					बूँद-बूँद कर झरा समय की  
					मुट्ठी से मधुमास  
					 
					स्मृतियों ने मोड़ लिये कुछ 
					पृष्ठों के कोने 
					 
					अवचेतन में गहरे उतरी 
					धूप जवानी की  
					तट पर फिर महसूस हुईं  
					गतिविधियाँ पानी की 
					 
					सहसा ऊँचे हुए शिखर जो  
					कल तक थे बौने 
					 
					१ दिसंबर २०१६ 
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