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अनुभूति में मनोज जैन मधुर की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
एक तू ही
कौन पढ़ेगा रे
चार दिन की जिंदगी
जिंदगी तुझको बुलाती है
सगुन पाखी लौट आओ
हालात के मारे हुए हैं

गीतों में-
करना होगा सृजन
गाँव जाने से
गीत नया मैं गाता हूँ
8छोटी मोटी बातों मे
दिन पहाड़ से
दीप जलता रहे
नकली कवि
नदी के तीर वाले वट

बुन रही मकड़ी समय की
मन लगा महसूसने
रिश्ते नाते प्रीत के
लगे अस्मिता खोने
यह पथ मेरा चुना हुआ है
लौटकर आने लगे नवगीत

शोक-सभा का आयोजन
सुबह हो रही है

संकलन में-
पिता की तस्वीर- चले गए बाबू जी

 

जिंदगी तुझको बुलाती है

मुस्करा रे मन !
हैं अभी भी सौ बहाने
जिंदगी तुझको बुलाती है

आसमान की तरफ उठाकर हाथ
गिलहरी गायेगी ही
चिड़िया भी नन्हें बच्चों को
चुग्गा लेकर आएगी ही
अंधियारा चाहे कितने भी
अपने लम्बे पैर पसारे
नन्हीं किरणों के उजास से
मानवता मुस्कायेगी ही

गुन गुना रे मन!
हैं अभी भी सौ तराने हैं
जिंदगी तुझको बुलाती है

बदली घिरकर आसमान से
मीठा जल बरसाती तो है
मद में होकर मस्त टिटहरी
प्यारा गाना गाती तो है
क्षिति जल पावक गगन समीरन
ने तो रूप नहीं बदला है
फूलों का रस लेने तितली
बागों में भी जाती तो है

मान जा रे मन !
मीत आए हैं मनाने
जिंदगी तुझको बुलाती है

१ जुलाई २०१८

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अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

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