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अनुभूति में मनोज जैन मधुर की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
गीत नया मैं गाता हूँ
छोटी मोटी बातों में
नकली कवि
नदी के तीर वाले वट

यह पथ मेरा चुना हुआ है
शोक-सभा का आयोजन

गीतों में-
दिन पहाड़ से
बुन रही मकड़ी समय की
मन लगा महसूसने
रिश्ते नाते प्रीत के
लगे अस्मिता खोने
लौटकर आने लगे नवगीत

संकलन में-
पिता की तस्वीर- चले गए बाबू जी

 

नदी के तीर वाले वट

काश! हम होते नदी के
तीर वाले वट

हम निरंतर भूमिका
मिलने मिलाने की रचाते
पाखियों के दल उतर कर
नीड़ डालों पर सजाते

चहचहाहट सुन हृदय का
छलक जाता घट

नयन अपने सदा नीरा
से मिला हँस बोल लेते
हम लहर का परस पाकर
खिल खिलाते डोल लेते

मंद मृदु मुस्कान
बिखराते नदी के तट

साँझ घिरती सूर्य ढलता
थके पाखी लौट आते
पात दल अपने हिलाकर
हम रुपहला गीत गाते

झुरमुटों से झाँकते हम
चाँदनी के पट

देह माटी की पकड़ कर
ठाट से हम खड़े होते
जिंदगी होती तनिक सी
किन्तु कद में बड़े होते

सन्तुलन हम साधते ज्यों
साधता है नट

२९ जून २०१५

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