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अनुभूति में मनोज जैन मधुर की रचनाएँ-

नयी रचनाओं में-
एक तू ही
कौन पढ़ेगा रे
चार दिन की जिंदगी
जिंदगी तुझको बुलाती है
सगुन पाखी लौट आओ
हालात के मारे हुए हैं

गीतों में-
करना होगा सृजन
गाँव जाने से
गीत नया मैं गाता हूँ
8छोटी मोटी बातों मे
दिन पहाड़ से
दीप जलता रहे
नकली कवि
नदी के तीर वाले वट

बुन रही मकड़ी समय की
मन लगा महसूसने
रिश्ते नाते प्रीत के
लगे अस्मिता खोने
यह पथ मेरा चुना हुआ है
लौटकर आने लगे नवगीत

शोक-सभा का आयोजन
सुबह हो रही है

संकलन में-
पिता की तस्वीर- चले गए बाबू जी

 

सगुन पाखी लौट आओ

एक सन्नाटा यहाँ
वातावरण में गूँजता है
जून का पारा हमें बैगन
सरीखा भूँजता है
सूखती संवेदना की झील
तुम आकर बचाओ
सगुन पाखी लौट आओ

आदमी हँसकर नदी की
लाज खुलकर लूट लेता
बेचकर जल जीव जंगल
धन असीमित कूट लेता
यह व्यथा तो है हमारी
तुम कथा अपनी सुनाओ
सगुन पाखी लौट आओ

हाल है ऐसा कि अब
हँसता नहीं है सर्वहारा
सोचता हूँ मैं तुम्हें
किस डाल पर दूँगा सहारा
ठीक ही होगा
अगर तुम लौट पाओ
सगुन पाखी लौट आओ

१ सितंबर २०१८

 

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