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अनुभूति में जगदीश श्रीवास्तव की रचनाएँ 

नए गीतों में-
आलपिन सी चुभ रही
गीत गाना सीख
गीत टिटहरी के
धूप तपी चट्टानों पर

हाशियों का शहर

गीतों में-
उभरते हैं रेत पर
सन्नाटा
सूख गया नदिया का पानी

 

सूख गया नदिया का पानी

सूख गया नदिया का पानी
तट पर बिखरी हुई कहानी
सूने तट पर फिर
यादों को मेला लगता है

पनघट, पगडंडी के रिश्ते
अधरों तक आए
जाने क्या मजबूरी थी
हम बोल नहीं पाए
भीड़ भरी यादों में दर्द
अकेला लगता है

तुम न आए जाने कितने
मौसम बीत गए
सावन की तरह आँखों से
आँसू रीत गए
यादों के पंछी का मन
अलबेला लगता है

आकर्षण ही आकर्षण था
मन के मेले में
चकाचौंध में खोये हम तुम
भीड़ झमेले में
धूल उड़ी यादों का दामन
मैला लगता है

24 जनवरी 2007

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