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                  अनुभूति में 
                      
        
                    जगदीश 
                    श्रीवास्तव
                  
                  
                  की रचनाएँ— 
                    नए गीतों 
					में-आलपिन सी चुभ रही
 गीत गाना सीख
 गीत टिटहरी के
 धूप तपी चट्टानों पर
 हाशियों 
					का शहर
 
					गीतों में-उभरते हैं रेत पर
 सन्नाटा
 सूख गया नदिया का पानी
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					गीत गाना सीख
 दर्द अपना हो या पराया हो
 ज़िन्दगी में लय बनाकर गीत गाना सीख,
 धड़कनों में, साँस में बजने लगे संगीत !
 
 नदी पत्थर तोड़,
 अपना पथ बनाती है
 ज़िन्दगी संघर्ष है, लड़ना सिखाती है।
 आदमी का अर्थ, जिस दिन जान लोगे तुम
 यह भी तय है, खुद को भी पहचान लोगे तुम।
 आँसुओं का दर्द, जब करवट बदलता है
 इक अजन्मे गीत का,
 मुखड़ा निकलता है।
 एक पल का दर्द, सदियों में पिघलता है,
 तब किसी चट्टान से, झरना निकलता है।
 दर्द अपना हो या पराया हो
 ज़िन्दगी में लय बनाकर गीत गाना सीख,
 धड़कनों में, साँस में बजने लगे संगीत !
 
 ख़ून से, मेहनत से जो,
 अपने पसीने से,
 तोड़ता पत्थर  है वो आवाज़ देता है;
 हौसला रखता है जो, ऊँची उड़ानों का,
 आसमानों तक वही परवाज़ देता है।
 सिमटकर जब भूख, आँखों में समाती है,
 मौत को फिर ज़िन्दगी,
 दर्पण दिखाती है।
 वतन की मिट्टी को जो, सर से लगाएगा,
 आने वाला वक्त, उसके गीत गायेगा !
 दर्द अपना हो या पराया हो
 ज़िन्दगी में लय बनाकर गीत गाना सीख,
 धड़कनों में, साँस में बजने लगे संगीत !
 
					५ नवंबर २०१२ |