| सपनों के घोड़े हम 
                                        दौड़ाते रहे नींद मेंसपनों के घोड़े
 
                                        कैसे-कैसे किए इरादेमंसूबे बाँधे
 दुनिया भर का बोझ उठा लेंगे
 अपने कांधे
 खुली आँख तो व्यर्थ गए
 सब चाबुक
 सब कोड़े।
 हम 
                                        दौड़ाते रहे नींद मेंसपनों के घोड़े
 हम से 
                                        ज़्यादा चतुर न कोईइस मूरख जग में
 हमें छोड़ पारा बहता है
 किसकी रग-रग में
 युग यथार्थ में ऐसे कितने
 दर्प वहम तोड़े
 हम 
                                        दौड़ाते रहे नींद मेंसपनों के घोड़े
 २४ 
                                        दिसंबर २००५ |