| अलस्सुबह अलस्सुबहतारों पर आ बैठे
 ओस के परिंदे
 फूलों नेगंध भरे संबोधन-
 दूर तक गुंजाए
 दोहराती हैं
 जिनको रह रह कर-
 घाटियाँ हवाएँ
 ऐसे में
                                        नाव नदी पत्थर तक
 दिखते हैं ज़िंदे
 अलस्सुबह
 तारों पर आ बैठे
 ओस के परिंदे
 गीतों ने
                                        बदसूरत चुप्पी के-
 जंग लगे ताले
 खोल किए
 साफ धुंध कोहरे के-
 दृष्टिहीन जाले
 धूप रही
                                        डाल गर्म स्वेटर में
 नए नए फंदे
 अलस्सुबह
 तारों पर आ बैठे
 ओस के परिंदे
 २४ 
                                        दिसंबर २००५  |