| अनुभूति में
                    डॉ. इसाक 'अश्क' की रचनाएँ- 
                     गीतों में-अलस्सुबह
 कंठ का कोहनूर
 चुनावी शोर
 दिन सुगंधों के
 फाल्गुन गाती हुई
 धूप दिन
 बौर आए
 सपनों के घोड़े
 संकलन में-मेरा भारत-
					
					भुवन क्या कहेगा
 वासंती हवा-
					ऋतु फगुनाई 
					है
 |  | ऋतु फगुनाई है 
 पद-रज हुई गुलाल
 लगा फिर ऋतु फगुनाई है
 
 मादल की
 थापें हों या हों
 वंशी की तानें
 ऐसे में
 क्या होगा यह तो
 ईश्वर ही जाने
 रक्तिम हुए
 कपोल
 झील ऐसे शरमाई है
 
                                        पद-रज हुई 
                                        गुलाललगा फिर ऋतु फगुनाई है
 गंध-पवन 
                                        केबेलगाम-
 शक्तिशाली झोंके
 कौन भला
 इनको जो बढ़कर
 हाथों से रोके
 खिले आग के
 फूल
 फूँकती स्वर शहनाई है।
 पद-रज 
                                        हुई गुलाललगा फिर ऋतु फगुनाई है
 २४ मार्च 
                                        २००६ |