| 
                      अनुभूति में 
                      
                      डॉ. 
                      सुधा ओम ढींगरा की रचनाएँ- 
                      नई रचनाओं में-चार छोटी कविताएँ
 छंदमुक्त में-कभी 
                      कभी
 चाँदनी से नहाने लगी
 तुम्हें क्या याद आया
 तेरा मेरा साथ
 प्रकृति से सीख
 पूर्णता
 बदलाव
 बेबसी
 भ्रम
 मोम की गुड़िया
 यह वादा करो
 |  | चार छोटी 
						कविताएँ 
                      जिन्दगी
 जीवन की भट्ठी में
 भावनाएँ
 संवेग
 अभिलाषाएँ
 इच्छाएँ
 दानों सी भून डालीं
 ज़िन्दगी फिर भी मचल गई...
 बालू सी हाथ से सरक गई...
 
 पहचान
 
 रिश्तों की
 गहरी खोह में
 उनकी गर्माहट लेने
 जब-जब जाने की कोशिश की
 अपेक्षाओं का विषधर
 फन फैलाए खड़ा था...
 कई बार डसा उसने
 रिश्तों की पहचान फिर भी न हुई
 
 प्रतीक्षा
 
 ग्राहकों को देख कर
 कोने में दुबकी पड़ीं
 धूल से सनी
 दो तीन हिन्दी की पुस्तकें
 कमसिन बाला सी सकुचाती
 विरहणी सी बिलखती
 अँगुलियों के स्पर्श को तरसती
 पाठक प्रेमी के हाथों में जाने की लालसा में
 प्रतीक्षा रत हैं...
 अंग्रेज़ी दादा का वर्चस्व
 प्रेमियों को उन तक पहुँचने नहीं देता...
 
                      छलना
 समय की कील पर
 बहाने टाँकते रहे
 प्राथमिकताएँ विचारों की भीड़ में
 धक्के खातीं कतार में
 पीछे खड़ी रहीं
 
                      समय की कमी है, कह आधुनिक होने की होड़
 और व्यस्त रहने के प्रपंच में
 स्वयं को छलते रहे
 ३० नवंबर २००९ |