| अनुभूति में 
                  शैल अग्रवाल की रचनाएँ- 
 
  छंदमुक्त में-अतीत के खज़ानों से
 अभिनंदन
 अशांत
 आदमी और किताब
 उलझन
 एक और सच
 एक मौका
 ऐसे ही
 किरक
 कोहरा
 खुदगर्ज़
 जंगल
 नारी
 देखो ना
 नेति नेति
 बूँद बूँद
 मिटते निशान
 ये पेड़
 लहरें
 सपना अभी भी
 
 हाइकू में
 दोस्त,
                  योंही,
                  आज
                  फिर,
                  जीवन,
                  आँसू
 संकलन में-गाँव में अलाव–धुंध 
					में
 शुभकामनाएँ–पिचकारी 
					यह
 होली –
                  होली हाइकू
 गुच्छे भर अमलतास– 
					आई पगली
 – 
					कटघरे में
 - 
					मुस्कान
 - 
                    
					ममता
 पिता की तस्वीर– 
					बिछुड़ते समय
 ज्योति पर्व– 
					तमसो मा ज्योतिर्गमय
 - 
					दिया और बाती
 - 
					धूमिल रेखा
 जग का मेला– 
					चार शिशुगीत
 ममतामयी– माँ : 
					दो क्षणिकाएँ
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					नेति नेति
 नहीं वह नहीं जिसे हम जीते हैं
 वह जो हमें चुपचाप जिए जाता है
 सावन के पहले चुंबन सा
 निःश्वासों, मुस्कानों में रचा बसा
 धरती की बंद पलकों पे
 मनचला घर बगिया लहराता है
 पीठ पर जड़ी आँखों संग
 देखा करता है सब आते जाते
 सुनता रहता है पदचाप
 और आँखों की खोई चमक
 ढूँढ लाता है —
 नहीं वह नहीं
 जिसे हम जीते हैं
 वह जो हमें चुपचाप जिए जाता है
 बस पलटता ही नहीं समय सा
 जल चुका है जो जल समाधि ले
 अपने ही अग्निदाह में
 देकर जीवन भर का आत्म संताप
 ग्लानि की कच्ची चुभन
 और होठों की भीगी मुस्कान
 जा बैठा जो भगवान बन
 क्यों अब गीता कुरान सा
 कानों से बार बार टकराता है
 मरता है नित नित
 और पुनर्जन्म ले आता है
 नहीं वह नहीं
 जिसे हम जीते हैं
 हाँ वही हठीला वह
 जिसके सहारे
 इंसान जी पाता है।
 
 
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